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नेत्र रोग: आंखों की समस्या और ज्योतिषीय नियम

हमारे शरीर के अंगो में आंखें बहुत महत्वपूर्ण हैं, जिससे हम ये प्रकाशमय संसार देखने के योग्य होते हैं नहीं तो हम जीवन के रंगो से अनज़ान रहते हैं और बिना आंखों की रोशनी के चल भी नहीं सकतें। 

आंखों की समस्या के लिए वैदिक ज्योतिषीय नियम: वैदिक ज्योतिष में भावों और ग्रहों के माध्यम से ही सभी योगों को समझ पाते हैं, आईये जाने किन योगों से नेत्रों की समस्या को समझ सकते हैं।

प्रकाशमान ग्रह: ग्रहों में सूर्य तथा चंद्रमा दांयी तथा बांयी आँख के कारक हैं और शुक्र नेत्रों तथा नेत्र ज्योति का कारक हैं। लग्न में पीड़ा रहित शुक्र सुंदर आँखे तथा खूबसूरत चेहरा देता हैं और शुक्र छोटी और आकृषित आंखे देता हैं। शुक्र आँख के लेंस का भी कारक हैं। जिनका शुक्र शुभ होता हैं या लाभ से संबंध रखता हैं, वह चशमें का व्यवसाय करते हैं।

भाव/भावेश: ज्योतिष में द्वितीय/द्वितीयेश भाव दृष्टि के भाव/भावेश हैं। बलि तथा शक्तिशाली द्वितीयेश या द्वितीय भाव पर शुभ प्रभाव के कारण सुंदर तथा स्वस्थ आँखे होती हैं। यदि द्वितीयेश छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो तो कोई नेत्र दोष अवशय होता हैं।

बारहवा भाव: द्वितीय भाव विशेष रूप से दांयी आँख तथा द्वादश भाव बांयी आँख का कारक हैं। पीड़ित चन्द्रमा बारहवें भाव में हो तो बांयी आँख को क्षति पहुँचाता हैं। सूर्य जो दांयी आँख का कारक हैं बारहवें भाव में हानि स्थान में होने से दांयी आँख को क्षति पहुँचता हैं। सूर्य का लग्न में होना नेत्रों के लिए अशुभ समझा जाता हैं।

मेष लग्न में सूर्य या मंगल नेत्रों में दाह, सूजन व लाली देता हैं। सिंह लग्न में मंगल रतौंधी का कारण होता हैं।

कर्क लग्न मंगल/सूर्य मोतिया बिंद देता हैं।               हमसें मिलने के लिए अभी बात करे!

तुला लग्न में सूर्य/मंगल अंधापन देता हैं।

क्षीण चंद्रमा शनि से दृष्ट और गुरु से अदृष्ट हो तब भी आंखों को लिए परेशानी होती हैं।

सूर्य दूसरे भाव में हो या दूसरे भाव में दो पाप ग्रहो का प्रभाव हो।

दूसरे भाव में चंद्रमा पाप ग्रहो से दृष्ट हो या सूर्य तथा चंद्रमा दूसरे भाव में हो तो रतोंधी हो सकती हैं।

चन्द्रमा षष्टेश होकर वक्री ग्रह की राशि में बैठा हो (कुम्भ लग्न में) (षष्टेश वक्री ग्रह की राशि में हो तो प्रतिकूल फल प्रदान करता हैं)। षष्ट भाव में चन्द्रमा शुभ ग्रह से अदृष्ट अथवा युक्त हो।

शुक्र षष्टेश होकर लग्न में हो तथा कोई शुभ ग्रह वक्री होकर छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो तब भी आंखो में परेशानी देता हैं। सूर्य, शुक्र तथा मंगल साथ किसी भी भाव में हो तब भी आंखो की कमज़ोरी दिखाता हैं।

द्वितीयेश तथा द्वादशेश एकसाथ शुक्र से छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो तब दोनो आंखे कमज़ोर होती हैं।

आंखो का अंधापन: नीचे दिये योगों से अंधापन तभी संभव होगा जब सभी वर्ग कुंड़लियों में भी पाप ग्रह हो तथा दशा कर्म भी इसे सूचित करता हो।

सूर्य से चंद्र दूसरे भाव में हो तथा पाप ग्रहों की युति अथवा दृष्टि से पीड़ित हो।

नीच चंद्र छठे या बाहरवें भाव में पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो। लग्न में अस्त चंद्रमा ग्रह हो।

सूर्य और चंद्र केंद्र में हो तथा जल तत्व राशि के आठवें नवांश में हो अर्थात कुम्भ में हो।         अपनी स्वास्थ्य संबंधित रिपोर्ट के लिए यहां क्लिक करें! 

लग्नेश अष्टम भाव में, पाप ग्रह की राशि में हो। मंगल चंद्र से छठे भाव में स्थित हो।

सूर्य, चंद्र, मंगल और शनि किसी भी भाव में दूसरे, छठे, आंठवे या बारहवें भावों में हो। पाप ग्रह 6/12 भावों में बांयी आँख को तथा 2/8 भावों में दायी आँख को क्षति पहुँचते हैं।

सूर्य लग्न में राहु/केतु अक्ष में हो तथा पाप ग्रह त्रिकोण में हो।

सूर्य, चंद्रमा छठेंं तथा आठवेंं भाव में मंगल या शनि के साथ हो।

चंद्रमा तथा शुक्र की युति पाप ग्रहों से पीड़ित हो।

लग्नेश, द्वितीयेश तथा सूर्य एक ही भाव में हो। अगर ये योग दूसरे भाव में हो तो जन्म से अंधापन होता हैं।

सूर्य व द्वितीयश, चतुर्थेश से युक्त हो तो माता को अंधापन होता हैं, जब ये तृतीयेश के साथ हो तो भाई को अंधापन, यदि नवमेश के साथ हो तो पिता को अंधापन होता हैं।

द्वितीयेश शुक्र लग्नेश से युक्त हो तथा वह शुक्र के नवांश में शुक्र की मूलत्रिकोण राशि में या शुक्र की उच्च राशि में हो।

जन्म से अंधे होने के योग:

सूर्य, शुक्र तथा लग्नेश त्रिकस्थान में हो। सूर्य, चंद्र, शुक्र, मंगल, शनि की युति किसी भी राशि में हो। नीच राशि में शनि अस्त हो तथा सूर्य ग्रहण के समय का जन्म हो। सूर्य, राहु-केतु अक्ष पर हो तथा मंगल और शनि त्रिकोण में हो। लग्नेश, द्वितीयेश, सूर्य और शुक्र किसी त्रिकस्थान में साथ हो। लग्नेश, द्वितीयेश और शुक्र की युति त्रि-स्थान में हो।

एक आँख से अंधापन: लगन में मंगल या चंद्र, शुक्र या गुरु से दृष्ट हो। सिंह राशि में चन्द्रमा सांतवे भाव में हो और मंगल द्वारा दृष्ट हो। कर्क राशि में सूर्य सप्तम भाव में मंगल द्वारा दृष्ट हो। चंद्र और सूर्य बारहवें या छठे भाव में हो तो जातक तथा उसकी पत्नी दोनों एक आँख वाले होते हैं।

आँख पर चोट: मंगल बारहवें भाव में तथा शनि दूसरे भाव में क्रमश बांयी व दांयी आँख पर चोट पहुँचाते हैं। द्वितीयेश, द्वादशेश तथा शुक्र नवांश कुंड़ली में नीच राशियों में हो तथा पाप ग्रहों से पीड़ित हो। द्वितीयेश, षष्टेश तथा दशमेश शुक्र के साथ लग्न में हो तो किसी कोप से आंख की हानि होती हैं।

किसी भी योग को शुभ तथा अशुभ प्रभावों के अध्ययन के बिना भविष्य फलन न कहें। प्राय: यह पाया गया हैं की ये योग दशा, गोचर के प्रतिकूल होने पर ही अपना प्रभाव दिखाते हैं।

कर्ण रोग तथा वाणी विकार

चिकित्सा ज्योतिष में ग्रहों और भावों के माध्यम से हम पहचान पाते हैं, कि हमारी कुंड़ली में कानों या वाणी में कोई कमज़ोरी या परेशानी तो नहीं आने वाली अगर आने वाली हैं तो कितनी ज्यादा बीमारी के साथ समय बिताना होगा। हम नीचे कुछ योगो के माध्यम से जान सकते हैं।  

ग्रहों में कान की बीमारी के लिए, सुनने तथा किसी भी प्रकार का संचार का कार्य बुध करता हैं। मज़बूत बुध शुभ ग्रहों के प्रभाव में अच्छी श्रवण शक्ति देता हैं। वही बुध पीड़ित हो तो विपरीत फल होते हैं।

भावों में तीसरा भाव- कुंड़ली में तीसरा भाव या तृतीयेश पर शुभ प्रभाव हो तो अच्छी श्रवण शक्ति होती हैं।

ग्यारहवां भाव- तीसरा भाव/भावेश दांया कान एवं एकादश भाव/भावेश बांया कान को दिखाते हैं। बुध और तीसरे भाव/भावेश और एकादश भाव/भावेश पर शुभ तथा अशुभ प्रभावों के अनुसार ही कान की श्रवण शक्ति के बारे में पता चलता हैं।        Why Worried? Ask a question and get solutions!      

दोषपूर्ण वाणी के ज्योतिषीय योग- ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथो के अनुसार गूंगेपन के योग इस प्रकार से हैं:-

बुध षष्टेश होकर मूक राशि (कर्क, वृश्चिक तथा मीन) में हो तथा पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो वाणी में दोष होता हैं क्योंकि बुध वाणी का भी कारक हैं तथा श्रवण शक्ति का भी कारक हैं।

बुध षष्टेश होकर लग्न में हो तथा पाप ग्रहों से प्रभावित हो।

बुध नवें भाव में हो तथा शुक्र दसवें भाव में हो तो इस योग से हकलाने का दोष होता हैं।

कर्क, वृश्चिक या मीन इन मूक राशियों में पापग्रह हो और चन्द्रमा वृष में अंतिम अंशो में हो और पाप दृष्ट हो तब भी वाणी दोष होता हैं। लेकिन जब उक्त योग में चन्द्रमा को शुभ ग्रह देखते हैं तो जातक देर से बोलना शुरू करता हैं।

द्वितीयेश गुरु के साथ आठवें भाव में हो क्योंकि जब द्वितीयेश गुरु के साथ अष्टम भाव में चतुर्थेश के साथ हो तो जातक की माता गूंगी होती हैं। जब द्वितीयेश गुरु के साथ अष्टम भाव में नवमेश के साथ हो तो जातक का पिता गूंगा होता हैं। पूर्ण चंद्र, लग्न में मंगल से युक्त हो क्योंकि बली मंगल, बुध और चंद्र इकट्ठे हो या एक दूसरे को देखते हो तो जातक प्रखर वक्ता होता हैं।

ग्रहों में वाणी का कारक बुध छठे, आंठवे या बारहवें भाव में शनि के द्वारा दृष्ट हो तो वाणी में परेशानी आती हैं।    Contact for Numerology Course

  1. शनि छठें भाव में हो तथा षष्ठेश बुध को देख रहा हो या बुध शनि से चौथे भाव में हो तथा षष्टेश किसी त्रिक भाव में हो तब भी कानों या वाणी से जुड़ी परेशानी हो सकती हैं।
  2. बुध तथा शुक्र की युति बारहवें भाव में बांये कान की दोषपूर्ण श्रवण क्रिया को दर्शाता हैं।
  3. तीसरे, ग्यारहवें, पांचवे या नवे भाव में पाप ग्रह शुभग्रहों से दृष्ट न हो या 3/9 अक्ष पर पाप ग्रह हो दांये कान को तथा 5/11 अक्ष पर बांये कान को क्षति पहुँचते हैं।
  4. नीच राशि में शुक्र राहु के साथ हो और बुध तथा षष्टेश किसी त्रिकस्थान में शनि के द्वारा दृष्ट हो तो भी वाणी विकार होता हैं।
  5. बुध तथा षष्टेश दोनों चतुर्थ भाव में हो और शनि लग्न में हो और सूर्य तथा बुध की युति तीसरे, छठे या ग्यारहवें भाव में हो तब भी वाणी दोष होता हैं।
  6. चंद्र, मंगल तथा बुध इकट्ठे राहु-केतु अक्ष पर तीसरे या ग्यारहवें भाव में हो क्योंकि यह योग भीतरी कान के गंभीर रोग मेंस्टायडायटिस को दिखाता हैं।
  7. सूर्य से युक्त बुध तीसरे, छठे या ग्यारहवें भाव में मंगल तथा शनि से सप्तम में हो और यह योग कान के आंतरिक भाग के उस रोग को दर्शाता हैं, जिसमें शल्यक्रिया अनिवार्य हो जाती हैं।

जन्म से मूक बधिर बच्चे के ज्योतिषीय नियम:                   ज्योतिष के अन्य नियम के लिए यहां देखें!

यह कटुसत्य हैं की जो बच्चे जन्म से ही बहरे पैदा होते हैं, उनमें वाणी द्वारा भावों को व्यक्त करने की समस्या पाई जाती हैं। यदि इस दृष्टिकोण से उनका विशेष ध्यान न रखा जाये तो वे कभी बोल नहीं सकते और ना ही अपने भावों को व्यक्त कर सकते हैं। प्राय: बालपन में बहरेपन को शीघ्र न जान पाने के कारण उचित आयु में वाक-चिकित्सा सुनिश्चित नहीं हो पाती। नवजात शिशुओं में श्रवण दोष तथा परिणाम वाक-दोष का पता लगाने के लिए निम्नलिखित तथ्य महत्वपूर्ण रोचक तथा उपयोगी हैं।

  1. भाव: तृतीय भाव/भावेश पर पाप प्रभाव क्योंकि तृतीय भाव, श्रवण अंग के साथ साथ श्रवण प्रणाली का भी भाव हैं। किसी बच्चे के जन्म से बहरे, गूंगे पैदा होने के लिए तीसरा भाव/भावेश का पीड़ित होना आवश्यक हैं।   ग्रहों के बारे में सम्पूर्ण जानकारी!
  2. चन्द्रमा पर पाप प्रभाव: किसी कुंड़ली में चन्द्रमा पर पाप प्रभाव बालारिष्ट योग को सूचित करता हैं। इस दोष को लेकर पैदा हुआ बच्चा स्पष्ट रूप से बालारिष्ट से पीड़ित होगा।
  3. पीड़ित अष्टम/अष्टमेश: अष्टम भाव ठीक न होने वाली असाध्य, लम्बी अवधि की बीमारी का घोतक हैं। लग्न कुंड़ली में अष्टम/अष्टमेश का पीड़ित होना उपरोक्त बीमारी के होने की पुष्टि करता हैं। अष्टमेश तृतीय भाव में हो या तृतीयेश से युति करे तो भी पीड़ा मिलती हैं।   अपनें व्यवसाय के बारें में जानें!
  4. राहु-केतु का प्रभाव: राहु-केतु अक्ष तृतीय/तृतीयेश से संबंध बनाये या उनसे दूसरे अथवा बारहवें स्थान पर हो तो राहु-केतु अक्ष अपनी छाया से तृतीय/तृतीयेश को पीड़ित करके बीमारी देता हैं।
  5. दशा चक्र-- महादशा/अंतर्दशा/प्रयत्नतर्दशा, सामान्यत जन्म के समय प्रतिकूल होगी तथा अधिकांश मामले में तीसरे भाव या तृतीयेश से संबंधित होगी।

विभिन्न रोगों के योग:

  • एकादशेश षष्ट भाव में हो तो विविध रोग देता हैं।
  • शनि और मंगल छठे भाव में राहु व सूर्य से दृष्ट हो तो दीर्घस्थाई रोग देते हैं।
  • राहु या केतु सप्तम भाव में या शनि अष्टम भाव में हो और चंद्र लग्न में हो तो अजीर्ण होता हैं।
  • गुरु तथा राहु लग्न में दंत रोग देते हैं।
  • षष्टेश तृतीय भाव में हो तो उदर रोग देता हैं।
  • शनि षष्टम या अष्टम भाव में पैरों में कष्ट देता हैं।
  • राहु या केतु षष्टम भाव में हो तो दंत या ओष्ठ रोग होता हैं।    Contacts Us for GemsStone       
  • लग्नेश मंगल या बुध की राशि में हो तथा शत्रु से दृष्ट हो तो गुदा क्षेत्र में रोग होता हैं।
  • कर्क या वृश्चिक नवांश में चन्द्रमा पाप युक्त हो तो गुप्त रोग होता हैं। गुप्त रोग का अर्थ वह रोग हो सकता हैं जिसे व्यक्ति अन्य लोगों से छुपाता हैं या यौन सम्बन्धों से हुआ रोग हो सकता हैं।
  • मंगल बुध तथा लग्नेश एक-साथ सिंह राशि में चतुर्थ या द्वादश भाव में हो तो गुदा या गुदा क्षेत्र में रोग हो सकता हैं।
  • अष्टम भाव में पाप ग्रह गुप्त रोग देता हैं और द्वादश भाव में गुरु का भी यही फल होता हैं।
  • बुध षष्ठेश तथा मंगल इकट्ठे हो तो जननांग में रोग होता हैं।

अष्टमेश अष्टम भाव में हो तो शरीर रोगोन्मुख होताहैं। 

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